मेंबरशिप ड्राइव वर्कशॉप में अमित शाह ऐसा क्या बोले? जो संबित पात्रा के दिल को छू गई

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा की अगुवाई में शनिवार को दिल्ली में राष्ट्रीय सदस्यता अभियान 2024 के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप का आयोजन हुआ. इस वर्कशॉप में गृह मंत्री अमित शाह, संगठन महामंत्री बीएल संतोष और सदस्यता अभियान के संयोजक विनोद तावड़े मौजूद रहे. बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने वर्कशॉप में क्या हुआ और कैसे ये सदस्यता अभियान चलेगा इस बारे में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि एक सितंबर से सदस्यता अभियान की शुरुआत होगी और इस दौरान 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को पार्टी से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है.

संबित पात्रा ने बताया, “जिन राज्यों में चुनावों का ऐलान हो गया है या जिन राज्यों में चुनाव आने वाले दिनों में होने हैं, उन राज्यों में ये सदस्यता अभियान बाद में चलाया जाएगा. तब इस संख्या में और इजाफा होगा.” संबित पात्रा ने बताया कि जब अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब साल 2014-15 के बीच पांच-छह महीने के दौरान सदस्यता अभियान चलाया गया था. उन्होंने कहा कि उस वक्त देश के करीब 11 करोड़ लोगों ने पार्टी की सदस्यता ली थी. इसके अलावा पार्टी ने छोटे से वक्त के लिए साल 2019 में भी सदस्यता अभियान चलाया था, जिसमें लगभग 7 करोड़ लोगों ने फिर से बीजेपी की सदस्यता ली थी. यानी 2014 से 2019 के बीच करीब 18 करोड़ लोगों ने पार्टी की सदस्यता ली थी.

कैसे ली जा सकेगी सदस्या?
मिस्ड कॉल के ज़रिए
क्यू आर कोड स्कैन करके
नमो ऐप के ज़रिए
बीजेपी डॉट ओआरजी यानी पार्टी की वेबसाइट के ज़रिए
क्या है सदस्यता अभियान चलाने की वजह?
अमित शाह के भाषण का ज़िक्र
बीजेपी एक बार फिर क्यों इतने बड़े पैमाने पर देश में सदस्यता अभियान चला रही है? इस सवाल का जवाब देते हुए संबित पात्रा ने कहा, “मूल उद्देश्य विस्तार है. किस तरह से बीजेपी अपने विचारों का और अपनी विचारधारा का जनता के बीच विस्तार कर सके, उसी मूल उद्देश्य को लेकर, ये जो राजनैतिक परंपरा है, उसे बीजेपी वक्त वक्त पर आगे बढ़ाती है.” उन्होंने इस दौरान अमिता शाह के भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा, “आज के भाषण में अमिता शाह ने दिल को छू लेने वाली बात कही. उन्होंने कहा कि जब पार्टी की स्थापना हुई थी 6 अप्रैल 1980 में और उससे पहले 1950 जनसंघ और उससे पहले विचारधारा 1925 की, उस समय मूल चिंतन यही था कि राजनैतिक सुख नहीं, संघर्ष.”

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